आज हर शख्स के हाथ में खंजर दिखाई देता है..., पर लूटी खूब वाहवाही

12:58 AM Rajsamand Blog 0 Comments


भगवतीप्रसाददेवपुरा स्मृति साहित्यकार सम्मान समारोह में मंगलवार रात को साहित्य मंडल के प्रेक्षागार भवन में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन हुआ। श्यामप्रकाश देवपुरा ने बताया कि कांकरोली के गौरव पालीवाल ने सरस्वती वंदना हम तो चाकर है, वो चार हाथ वाला..., से शुरूआत की।

नागदा से आए कवि अशोक मदृल ने हास्य रस की वा रे सत्यानाशी..., दिल्ली के राम लोचन ने ये मेरे गीत है जो गीत सब हिंदी में गाते है..., नाथद्वारा के जितेंद्र सनाढ्य ने नमामि ब्रज वल्लभ..., हरिद्वार के उमेश शर्मा ने मैं यू ही नहीं जाता, पर्वत श्रृंखलाओं में..., नाथद्वारा के प्रमोद सनाढ्य ने छोटे थे तो लड़ते थे, मां मेरी है मां मेरी है... और खुश रहो, खुशद्रा में रहो, हंसते मिलते चेहरे में रहो सुनाकर दाद बटोरी। इंदौर के प्रभु त्रिवेदी ने मां दीपक धरती रही, वहीं ताक है बंद..., आंगन की दीवार ने, छीन लिया आनंद.., कांकरोली के शेख अब्दुल हमीद ने रात मुझसे सवाल करती है, दिन मुझसे जवाब करता है..., मेरे इस खुशनुमा चमन की फिजा कौन खराब करता है.., अफजल खां अफजल ने और मैं आज भी गुजर रहा हूं, कविता के रास्तों पर, सुना कर तालियां बटोरी।

आगरा की रमा वर्मा ने अंजुरी में चांदनी ले आंचल में छांव..., जाने कितनी दूर चले आएं तेरे गांव.., सुषमा सिंह ने हम करा रहे है केवल अक्षर ज्ञान..., मावली के राव सुरेंद्र सिंह मृत्युंजय ने कोटि हिय भक्ति रत, गावे गान कंठ..., तुलसीदास सनाढ्य ने मानवता की मिटती हस्ती, वहां भी सारी रहती बस्ती.., अलीगढ़ के नरेंद्र शर्मा ने चांदी का चक्कर चला, कटा न्याय का शीश..., भोपाल के शिवप्रसाद मिश्र ने सहस्त्राक्ष स्वर्गी स्वयंयीश्वर..., सुनाकर श्रोताओं की वाह वाही लूटी।

वहीं जयपुर के विठ्ठल पारिख ने कहीं घोर अंधेरा छाया है.., नाथद्वारा के गिरिश विद्रोही ने अपने राष्ट्र की गौरव गरिमा का गान नहीं रूकने देना रे..., राधारमण सनाढ्य ने मेरो नहीं लागयौ रहे तुम में तुम्हारों लागे नहीं.., अलीगढ़ के गाफिल स्वामी ने राम अयोध्या में नहीं, मथुरा में नहीं श्याम.., जयपुर की डॉ. सरोज गुप्ता ने देखे दर्पण के पानी से कैसे कोई प्यास बुझाए.., कोटा के कजिल खंडेलवाल ने है कान्हा तू कहलाता है माखनचोर..., मेरठ के जयवीर सिंह यादव ने शब्द सरल मधु भाव से..., समझ सके सब कोय..,

पंजाब फगवाड़ा के कवि मनोज फगवाड़वी ने आज हर शख्स के हाथ में खंजर दिखाई देता है..., दिल्ली के राम लोचन ने धार जब बहती है..., कोटा के डॉ. रघुनाथ मिश्र ने शब्द मूल्यहीन हो गया शिल्प कथ्यहीन हो गया.., सुनाकर तालियां बटोरी।

नाथद्वारा। साहित्य मंडल में साहित्यकारों का सम्मान करते अतिथि।

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