राजसमन्द झील
जब जल पर उतरता था विमान
मेवाड़ क्षेत्र की सबसे खूबसूरत, कलात्मक झील है राजसमंद। निर्माण तो 17वीं सदी में महाराणा राजसिंह के द्वारा करवाया गया किंतु इसका उपयोग दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान इंग्लैंड के विमानों को उतारने के लिए भी हुआ। ईंधन की अापूर्ति तो करनी ही थी, भीम और आसपास के क्षेत्रों के सैनिकों को भी लिया जाता था।
इस झील को 1937 ईस्वी में 'मेरीनड्रोम' की तरह विकसित किया गया। चारों ही दिशाओं में मजबूत लोह शृंखलाओं का प्रयोग करके जेट्टी बनाई गई, उसी पर विमान को बहुत सावधानी से उतारा जाता था। यह लोह शृंखला एक दशक पहले, 2004-05 में जबकि झील बिल्कुल सूख गई तब दिखाई दी तो लोगों ने उसको उठाने व संभालने का प्रयास किया किंतु फिर वैसे ही छोड़ दिया गया। तब इसके बारे में जानकारियां जुटाने का प्रयास हुआ,,, केवल सूचनाएं मिली कि रियासत काल में यहां विमान उतारने के लिए इस लोहशृंखला के सहारे हवाईपट़टी बनाई गई थी... बात आई गई हो गई।
हाल ही एक समाचार से उस काल के विमान की तस्वीर मिली,,, धन्यवाद Gopkshetra Itihas Sanskruti कि मेवाड़वासियों को भी उस दौर की जानकारी मिली। यह अंतरराष्ट्रीय विमान सेवा इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया के लिए थी और तिगरा-ग्वालियर के बाद यह राजसमंद भी पहुंचता था। तब तस्वीर शायद इसलिए नहीं खींची गई कि वहां कैमरा नहीं होगा...।
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#thanks to Shri krishan jugnu
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