क्या 2019 में नीतीश और राहुल एक दूसरे के लिए चुनौती बनने वाले है !

6:20 AM Rajsamand Blog 0 Comments

ये एक सवाल है जो 2019 की जमीन तैयार होने से पहले पूछा जा रहा है. हालांकि चुनाव में अभी काफी वक्त है, लेकिन राजनीति में ये वक्त बीतने में वक्त नहीं लगेगा.

New Delhi, Nov 30: राजनीति की घड़ी ने वक्त बदल जाने का इशारा कर दिया है, अब सिर्फ कुछ परिवार नहीं, बल्कि विचारधाराएं और चेहरों की लड़ाई है. इस लड़ाई में कुछ पुरानी सिय़ासी रुढ़ियों को धवस्त किया गया है. 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में जिस तरह से नरेंद्र मोदी की लहर आई, उसी लहर ने इस पारंपरिक राजनीति के अंत के संकेत दिए थे, क्योकि जिस गति से मोदी लहर आई थी उससे सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस के किले को ही हुआ था, इस लहर ने भी जब विकराल रुप लिया तो कई सेना ने अपने इलाके कि किलेबंदी एक साथ मिलकर की.

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यानि की मोदी लहर ने ना सिर्फ कांग्रेस का एकाधिकार खत्म कर दिया बल्कि कई विरोधियों के एक गुट में बांध दिया, अब दिल्ली और बिहार की जीत के बाद, अगली लड़ाई 2019 में मानी जा रही है. जहां नरेंद्र मोदी के विपरित 2 विकल्प दिखाई दे रहे है. एक अरविंद केजरीवाल और दूसरा नीतीश कुमार, लेकिन इतनी जल्दी विकल्प के तौर पर दोनों को मान लेना भी जल्द बाजी होगी, ऐसा इसलिए कह रहे है क्योकि बिहार और दिल्ली चुनाव में नीतीश और केजरीवाल ने एक दूसरे का समर्थन किया था, वो एक दूसरे के कार्यक्षेत्र में दखल और दिलचस्पी अपने हिसाब से ले रहे थे, लेकिन 2019 में तो दोनो में से एक को अपने अरमानों की कुर्बानी देनी होगी, और इसके अलावा 2019 के लिए कांग्रेस राहुल का प्लेटफॉर्म तैयार करने में लगी है.

कांग्रेस ने बिहार में नीतीश का समर्थन बिना किसी शर्त के पीछे रहकर किया, न सिर्फ चुनावों में बल्कि जीत में भी खुशी का हिस्सा कांग्रेस के खाते में अल्प ही आया. अब अगर 2019 की बात होगी तो राहुल किसी भी स्तर पर नीतीश या फिर केजरीवाल की अगुवाई के लिए तैयार तो नहीं होंगे. क्योकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि बिहार में लालू और राहुल के पास नीतीश के पीछे खड़े होने का कोई विकल्प भी नहीं था. पहली बात तो ये है कि महागठबंधन का अस्तित्व बना रहे, क्योकि बिहार चुनाव के बाद ही महागठबंधन की दीवार की दरारें पड़ने लगी है.

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लालू और केजरीवाल के गले मिलने और हाथ उठाने को लेकर जिस तरह से केजरीवाल ने अपना पल्ला झाड़ा है उसके बाद तो केजरीवाल का दोबारा उस तरह के मंच को साझा करना मुश्किल होगा. क्योकि न सिर्फ लालू को जबरदस्ती गले मिलने का आरोप लगा दिया बल्कि उन्हे परिवारवाद के लिए घेर भी लिया. जिसने उन सारी संभवानाओं को खत्म कर दिया कि किसी सामाजिक तौर पर केजरीवाल और लालू एक साथ दिखाई देंगे.

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